दूसरा सबसे बड़ा शक्तिपीठ रजरप्पा छिन्नमस्तिका मंदिर का रहस्य, इतिहास, कैसे पहुंचे

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विषय – सूची – Table of Content

  1. छिन्नमस्तिका मंदिर
  2. छिन्नमस्ता देवी की कहानी
  3. छिन्नमस्तिका मंदिर का वास्तुकला
  4. छिन्नमस्तिका मंदिर का धार्मिक महत्व
  5. छिन्नमस्तिका मंदिर कैसे पहुंचे
  6. छिन्नमस्तिका मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय

छिन्नमस्तिका मंदिर (Chhinnamastika Temple Overview in Hindi)

छिन्नमस्तिका मंदिर भारत के झारखंड में रामगढ़ जिले के रजरप्पा में स्थित एक हिंदू तीर्थ है। इस मंदिर की मुख्य देवी छिन्नमस्तिका है, जो माता पार्वती का एक रूप है। माँ छिन्नमस्तिका का अन्य नाम छिन्नमस्ता, स्वयंभू देवी व चिंतपूर्णी माता भी है। माँ छिन्नमस्तिका को ‘प्रचंड चंडिका’ के नाम से भी जाना जाता है। इस मंदिर में बिना सिर वाली देवी मां की पूजा की जाती है। यह मंदिर रजरप्पा में भैरवी-भद्रा और दामोदर नदी के संगम पर स्थित है। मंदिर चारों ओर से जंगल से घिरा हुआ है, इस कारण मंदिर की शोभा और बढ़ जाती है। मंदिर का अत्यधिक धार्मिक महत्व है क्योंकि यह देश के शक्ति पीठ मंदिरों में से एक है।

मंदिर अपनी तांत्रिक शैली की वास्तुकला के लिए प्रसिद्ध है। यह मंदिर असम के प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर जैसा दिखता है। छिन्नमस्तिक मंदिर के अलावा, महाकाली मंदिर, सूर्य मंदिर, दस महाविद्या मंदिर, बाबाधाम मंदिर, बजरंगबली मंदिर, शंकर मंदिर और विराट रूप मंदिर के नाम से सात मंदिर यहाँ स्थित हैं।

छिन्नमस्ता देवी की कहानी (Story of Chhinnamasta Devi in Hindi )

शक्ति पीठ होने के कारण मंदिर से जुड़ी कई रहस्यमयी कहानियां प्रचलित हैं। यह मंदिर काफी पुराना है और इसका उल्लेख वेदों और पुराणों जैसे विभिन्न हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है।

हजारों साल पहले, राक्षसों ने पृथ्वी पर आतंक किया था। जिससे मनुष्य माता शक्ति को याद करने लगे। तब पार्वती माता ने अपने ‘छिन्नमस्तिक’ का रूप धारण किया।

तब माता छिन्नमस्तिका ने खड़ग से राक्षसों का संहार करना शुरू कर दिया। भूख-प्यास का भी ख्याल नहीं रखा, बस पापियों का नाश करना चाहती थी। माँ ने अपना जबरदस्त रूप लिया था। पापियों के अलावा, उन्होंने निर्दोष लोगों को भी मारना शुरू कर दिया। तब सभी देवता प्रचंड शक्ति से भयभीत हो गए और भगवान शिव के पास गए और शिव से प्रार्थना करने लगे कि माता छिन्नमस्तिका के दुष्कृत रूप को रोकें, अन्यथा पृथ्वी पर उथल-पुथल मच जाएगी।

देवताओं की प्रार्थना सुनकर भगवान शिव माँ छिन्नमस्तिका के पास आए। भगवान शिव को देखकर माता छिन्नमस्तिका ने कहा, ‘हे नाथ! मुझे भूख लगी है। मैं अपनी भूख कैसे मिटा सकती हूँ? ‘भगवान शिव ने कहा कि’ आप पूरे ब्रह्मांड की देवी हैं। आप स्वयं एक शक्ति हैं। तब भगवान शिव ने उपाय बताया कि यदि आप खड़ग से अपनी गर्दन काट कर ‘शोणित’ (खून) पीते हैं तो आपकी भूख मिट जाएगी। तब माता छिन्नमस्तिका ने भगवान शिव की बात सुनकर तुरंत खड़ग से अपनी गर्दन काट दी और सिर को बाएं हाथ में ले लिया। गर्दन और सिर अलग होने से गर्दन से खून की तीन धाराएं निकलीं, जो बाएं-दाएं ‘दाकिनी’ – ‘शाकिनी’ थीं। माता के बाएं-दाएं में उपस्थित ‘दाकिनी’ – ‘शाकिनी’,  दोनों के मुख में दो धाराएँ चलीं और बीच में तीसरी धारा माता के मुख में चली गई, माता तृप्त हो गई।

 

 

छिन्नमस्तिका मंदिर का वास्तुकला (Architecture of Chinnamastika Temple in Hindi)

मंदिर में देवी की मूर्ति को उनके डरावने प्रतीकवाद के कारण आसानी से पहचाना जा सकता है। माँ नग्न अवस्था, खुले बाल, जीभ बाहर और आभूषणों से अलंकृत है। आत्म-निर्णायक देवी के एक हाथ में कटा हुआ सिर और दूसरे हाथ में तलवार है। उनके गले से खून की तीन धाराएँ निकल रही हैं, जिनमें एक धारा अपने ही कटे सिर के मुँह में जा रही है जिससे वो लहूलुहान है, दूसरी दो धाराएँ सामने खड़ी डाकिनी और शाकिनी दोनों के मुँह में जा रही हैं।

ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण लगभग 6 हजार साल पहले हुआ था। इस मंदिर का निर्माण वास्तुकला के अनुसार किया गया है। इसके गोलाकार गुंबद का शिल्प असम के ‘कामाख्या मंदिर’ की कला से मिलता है। मंदिर में केवल एक द्वार है। मंदिर का मुख्य द्वार पूर्व दिशा में है। बलि का स्थान मंदिर में है, जहां प्रतिदिन बकरे की बलि दी जाती है। मुंद्रन कुंड भी है। यहाँ पापों का नाश करने वाला कुण्ड भी है। यहाँ रोगग्रस्त भक्तों को उनके रोगों से मुक्ति मिलती है।

माँ की बड़ी रक्तरंजित मूर्ति इस बात का प्रतीक है कि देवी जीवन देने वाली होने के साथ-साथ जीवन लेने वाली भी हैं। ऐसा माना जाता है कि जो भक्त पूरे मन से पवित्र हृदय से मां की पूजा करता है, उसकी सभी मनोकामनाएं देवी द्वारा पूरी होती हैं।

छिन्नमस्तिका मंदिर का धार्मिक महत्व (Religious Significance of Chhinnamastika Temple in Hindi)

कई पर्यटक और तीर्थयात्री पूरे वर्ष भर भारत और अन्य देशो से आते हैं। पूर्णिमा और अमावस्या की रात को, लोगों की एक बड़ी मण्डली यहाँ इकट्ठा होती है। अपने धार्मिक महत्व के कारण, यह हिंदू विवाह और मुंडन (बच्चे का सिर मुंडवाना) के लिए लोकप्रिय है। तांत्रिक अपनी तंत्र विद्या का अभ्यास करते हैं। मकर संक्रांति और विजयादशमी के पर्व पर विशेष मेले का आयोजन किया जाता है।

धार्मिक महत्व के अलावा यह स्थान अपने पर्यावरण और हरियाली के कारण पिकनिक स्पॉट के लिए भी प्रसिद्ध है। यह स्थान पहाड़ियों और नदियों से घिरा हुआ है। गर्म पानी के झरने इस क्षेत्र की सुंदरता को बढ़ाते हैं। यहाँ भेरा नदी दामोदर नदी में मिल कर एक जलप्रपात बनाती है।

छिन्नमस्तिका मंदिर कैसे पहुंचे (How to reach Chhinnamastika Temple in Hindi)

हवाईजहाज से- मंदिर से 70 किमी की दुरी पर रांची निकटतम हवाई अड्डा है।

ट्रेन से- निकटतम रेलवे स्टेशन रामगढ़ कैंट स्टेशन (28 किमी (17 मील)), बोकारो स्टील सिटी (58 किमी (36.04 मील)) हैं।

सड़क द्वारा- 

  • रामगढ़ छावनी में उतरें। रजरप्पा मंदिर जाने के लिए रामगढ़ छावनी से ट्रेकर, जीप या कैब बुक कर सकते है। पूरे दिन पुराने बस स्टैंड पर ट्रैवल साधन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
  • रांची में उतरें और मजेदार एवं सुंदर सड़क यात्रा के माध्यम से 70 किमी ड्राइव करें।

छिन्नमस्तिका मंदिर जाने का सबसे अच्छा समय (Best time to visit Chhinnamastika Temple in Hindi)

माता के दर्शन के लिए मंदिर खुलने का समय-

दर्शनसुबह सेरात तक
सर्दियों में5:30 बजे से9:30 बजे तक
गर्मियों में4:00 बजे से10:00 बजे तक

देवी की आरती सुबह 6:00 बजे और शाम 8:00 बजे होती है।

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